कई जन्मों की डोर हैं हम
मैं और तुम
जन्मों साथ चले हैं
सदियों के फ़ासले तय किये है हमने
एक जन्म
जब गीज़ा की मीनार तले
रेत पर खड़ी थी तुम
मैं खानाबदोश चला आया था ऊँठ लिए।
काले लिबास में ढंकी
तुम्हारी आँखों का प्यार वही था
जब
घूंघट के छोर से देखा था तुमने
सफेद कुर्ते और धोती में
मुझे अगले जन्म में।
इस जन्म
रेत पे जहां
तुमने पैरों से निशान बनाये
उन्ही पर रख के पैर
थामा है तुमको।
इस डोर को
थामे रखो।
जन्मों के धागों से बंधे रिश्ते
यूँ नही टूटा करते।
-मनुज मेहता
3 comments:
ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!
शुक्रिया संजय जी।
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