Friday, January 10, 2020

पहाड़ी शहर

कुछ देर के लिए ही आये थे
वक्त था हमारे पास और तुम्हे देखना था वो
पहाड़ी शहर

झील के पास भुट्टे अभी भुन ही रहे थे
कि बरसात की बूंदों ने भिगो दिया था हमको।

तुम अटक के रह गयी थी बाजार के उस तरफ
बिना छतरी।

मैं इंतेज़ार में खड़ा रहा बड़ी देर उस गुम्बद तले जहां सारा शहर ही चला आया था।
जब बरसात न थमी न ही हल्की हुई, तुम्हे ढूंढते हुए जा पहुंचा था तुम्हारे पास।
तुम दूर से मुस्कुरा दीं थी।

तुम्हे बरसात पसंद आ रही थी उस रोज़।

और उस एक छतरी और बहते हुए पानी में भीगते हुए वापिस आ गए थे गुम्बद तले।

तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा
तैरता है आंखों में।

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...

संजय भास्‍कर said...

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