Tuesday, March 3, 2020

जन्मों की डोर

कई जन्मों की डोर हैं हम
मैं और तुम
जन्मों साथ चले हैं
सदियों के फ़ासले तय किये है हमने

एक जन्म
जब गीज़ा की मीनार तले
रेत पर खड़ी थी तुम
मैं खानाबदोश चला आया था ऊँठ लिए।
काले लिबास में ढंकी
तुम्हारी आँखों का प्यार वही था
जब
घूंघट के छोर से देखा था तुमने
सफेद कुर्ते और धोती में
मुझे अगले जन्म में।

इस जन्म
रेत पे जहां
तुमने पैरों से निशान बनाये
उन्ही पर रख के पैर
थामा है तुमको।

इस डोर को
थामे रखो।
जन्मों के धागों से बंधे रिश्ते
यूँ नही टूटा करते।

-मनुज मेहता

3 comments:

संजय भास्‍कर said...

ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!

Manuj Mehta said...
This comment has been removed by the author.
Manuj Mehta said...

शुक्रिया संजय जी।