मैंने जब तुम्हारे बालों को छुआ
तुम मुड़ी, थोड़ा हंसी, मैं भी हँसा
फिर हमारे साथ
झील, वादी, पहाड़, बादल
फूल, कोंपल, शहर, जंगल
सब के सब हंसने लगे
हमारी हंसी ने भर दिया इक रंग
रेत को कर दिया सुनहरा
चाँद को और रौशन।
फिर तुमने छुआ
सिर्फ मेरे होंठों या
हाथों-भर को नहीं
तुमने छुआ
मेरे अंतर्मन को
जन्म जन्मांतरों को
सुख और दुःख को।
खुशी और वेदना को।
तुमने
सिर्फ तुमने
तुम्हीं ने।
हम दोनों का होना ज़रूरी है
हम दोनों के लिए।
-मनुज मेहता
3 comments:
सुन्दर प्रस्तुति !
आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !
शुक्रिया पसंद करने के लिए! 🙏🙏
Superb 👌
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