Tuesday, April 28, 2020

मुई रात

कुछ तो अटका है
हलक में शायद,
जाम है धड़कन भी
भारी सीना है
मद्धम है सांस भी शायद।

लब सूखे हैं आंखे नाशाद हैं
नींद भी कमबख्त कबसे नाराज़ है
चैन भी है बेचैन आजकल
बहुत कुछ है अजीब आजकल।

कुछ तो तरकीब हो कोई
कुछ तो तरीका हो,
कि इस मुई रात को भी
नींद आए
और इस सुबह का भी सवेरा हो।

- मनुज मेहता