समुन्द्र की गहराई में
अपनी लालिमा समेटे हुए
डूबता हुआ सूरज !
और साहिल पे खेलते हुए कुछ बच्चे,
दौड़ते भागते, हँसते खिलखिलाते!
और वहीँ दूर,
उस साहिल पे
एक टूटी हुई नाव के पास
बैठा मैं,
विषमताओं और अविषमताओं में उलझा हुआ !
नए सूरज के उगने के इंतज़ार में
शायद!
शुरुआत के लिए अंत का होना ज़रूरी है !
2 comments:
achchi rachna hai
har ant ke piche aarambh hai......duniya ugte suraj ko poochti hai to poorab se apni lalima bikherne ke purv astachal se bhi gujarta hai-kramwaar,har din........
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