सुनो
मैं भेज रहा हूँ तुम्हे
अपने झिझकते शब्दों के साथ
थोड़ा सा सावन
अंतर्मन को गुदगुदा देने वाली
पहली फुहार
सर्द सुबह की पहली ओस
भीगी हुई घास की हरी गुनगुनाहट
झींगुरों की अंतहीन पुकार
पक्षियों का कलरव
थोड़ा सा आकाश
तारों की कतार
और एक प्राचीन कामना के साथ
अपना प्रणय निवेदन।
मनुज मेहता
1 comment:
बहुत सुन्दर एहसास।
कृपया Verification को हटाए।
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