Saturday, September 27, 2008

अंत का होना ज़रूरी है

समुन्द्र की गहराई में
अपनी लालिमा समेटे हुए
डूबता हुआ सूरज !
और साहिल पे खेलते हुए कुछ बच्चे,
दौड़ते भागते, हँसते खिलखिलाते!
और वहीँ दूर,
उस साहिल पे
एक टूटी हुई नाव के पास
बैठा मैं,
विषमताओं और अविषमताओं में उलझा हुआ !
नए सूरज के उगने के इंतज़ार में
शायद!
शुरुआत के लिए अंत का होना ज़रूरी है !

2 comments:

प्रशांत मलिक said...

achchi rachna hai

रश्मि प्रभा... said...

har ant ke piche aarambh hai......duniya ugte suraj ko poochti hai to poorab se apni lalima bikherne ke purv astachal se bhi gujarta hai-kramwaar,har din........