Tuesday, March 3, 2020

सिर्फ़ तुम

मैंने जब तुम्हारे बालों को छुआ
तुम मुड़ी, थोड़ा हंसी, मैं भी हँसा
फिर हमारे साथ
झील, वादी, पहाड़, बादल
फूल, कोंपल, शहर, जंगल
सब के सब हंसने लगे
हमारी हंसी ने भर दिया इक रंग
रेत को कर दिया सुनहरा
चाँद को और रौशन।

फिर तुमने छुआ
सिर्फ मेरे होंठों या
हाथों-भर को नहीं
तुमने छुआ
मेरे अंतर्मन को
जन्म जन्मांतरों को
सुख और दुःख को।
खुशी और वेदना को।
तुमने
सिर्फ तुमने
तुम्हीं ने।

हम दोनों का होना ज़रूरी है
हम दोनों के लिए।

-मनुज मेहता

जन्मों की डोर

कई जन्मों की डोर हैं हम
मैं और तुम
जन्मों साथ चले हैं
सदियों के फ़ासले तय किये है हमने

एक जन्म
जब गीज़ा की मीनार तले
रेत पर खड़ी थी तुम
मैं खानाबदोश चला आया था ऊँठ लिए।
काले लिबास में ढंकी
तुम्हारी आँखों का प्यार वही था
जब
घूंघट के छोर से देखा था तुमने
सफेद कुर्ते और धोती में
मुझे अगले जन्म में।

इस जन्म
रेत पे जहां
तुमने पैरों से निशान बनाये
उन्ही पर रख के पैर
थामा है तुमको।

इस डोर को
थामे रखो।
जन्मों के धागों से बंधे रिश्ते
यूँ नही टूटा करते।

-मनुज मेहता