Manuj Mehta
सब कुछ वैसा ही रहा,
धरती, आकाश, जंगल
और वो खुद भी!
शांत, स्थिर और सुंदर!
टूटा कुछ मेरे अंदर
पर
किसी ने आवाज़ नहीं सुनी!
कुछ बिखरा अचानक,
पर किसी ने नहीं देखा!
कुछ खो गया,
किसी ने ध्यान नहीं दिया!
उसने भी नहीं;
चले जाने के बाद।
~मनुज मेहता
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