आओ वो पुरानी किताब ढूंढें,
जिसके सफों में बरसों पहले,
एक गुलाब रखा था हमने,
आओ! उसे पानी दे दें
मुरझा गया है शायद.
सर्दी की वो सर्द सुबहें भी,
कितनी गर्म थीं उस शॉल के अंदर
जिसे हम अक्सर ओढ़ लिया करते थे
आओ! वो शॉल ढूंढें.
कॉफी होम के वो दिन, याद हैं ना,
कितने आसान से थे,
तुम्हारा आना, मेरा मिलना
और शाम का हंसते हुए चुपचाप ढल जाना
आओ! उन हंसती शामों की सुबह ढूंढें.
आओ! वो पुरानी किताब ढूंढें!
~मनुज मेहता
9 comments:
Remembering...As the soft notes of a melancholy tune... your words awaking my senses... warm scents of golden Autumn, calling back the first colours of Spring...the thrill of emotions...that makes Humans feel so alive...
It is very Beautiful Poem. For the first time, I could enjoy your writting through a very good english translation...Congratulations!! You are an excellent Poet!
thank you so very much Teresa Gouveia for understanding the poem. i am glad you like it and enjoyed it.
regards
बहुत ही प्यारी कविता है...बातों को इतनी आसानी से कह जाना कोई तुम से सीखे...:) शुक्र है कि...
तुम लौट आए अपने कमरे पर,
जाने कितने दिनो से तकते तकते
निगाहें बेजान सामान हो चली थी!!
बहुत खूब .. यादों की पुरानी किताब में कितना कुछ है ... लाजवाब ...
Shukriya Renu ji. i am glad you read this and appreciated this. Yes you are right, i have not published here from many months. i will keep it rolling! :)
Shukriya Digamber Naswa ji for your appreciation1 :)
Amazing finally the point s here.... :)
wow very nice..happy new year2017
www.shayariimages2017.com
आज मैं आपके ब्लॉग पर आया और ब्लोगिंग के माध्यम से आपको पढने का अवसर मिला
ख़ुशी हुई.
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