जब तुम खोलोगी दरवाज़ा,
तो तुम्हारे पीछे का वो आला
अपनी कितोबों की आभा
उड़ेल देगा तुम पर,
खिड़की की धूप
रौशन कर देगी तुमको
और हवा
न जाने तुम्हारी कितनी ही खुशबूएं ले आएँगी मुझ तक
चिड़ियों की न जाने कितनी ही आवाजें
तुम्हारे साथ मुझे अंगीकार करने को आतुर होंगी,
और पलाश की अन्तिम किरण
हमारे ही कमरे में बुझेगी.
तुम्हारी हँसी जैसे दिन के हर यौवन को
अपनी अंजलि से उछाल देगी मेरी तरफ़.
और जब तुम्हारे होठों की परछाइयां झुकेंगी मेरे होठों पर
सांझ का रंग डूब जाएगा.
तब आनंत में एक खिड़की खुलेगी
और हमारी देह को दीप्त करती हुई
अन्तरिक्ष में प्रेम की जगह बनाएगी.
अनंत तारों एक बिछौना होगा
और हमारी देह
एक ज्वलंत पुष्प!
17 comments:
vaah.... bahut sundar!!
सुन्दर भाव!!
khubsurat rachana
हमेशा की तरह बहुत प्रभावी
मनुज जी
एक बेहद शशक्त रचना, मन के सुंदर भावः हैं इसमें, जीवन की अनंत इछाओं को को समेटे बेहतरीन प्रस्तुति
बहुत सटीक अभिव्यक्ति. धन्यवाद.
अति सुंदर भाव.
धन्यवाद
bahut hi badhiyaa rachna hai......
वाह मनुज जी हमेशा की तरह आप अपने भावो की कुशल अभिव्यक्ति मैं सफल हुए हैं बधाई और इतनी सुंदर रचना को हमारे साठ बांटने के लिए साधुवाद मेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
http://manoria.blogspot.com
manuj ji
This is your best !!!
bahut hi sashakat rachna . man ko chooti hui , bahut gahrai me utar kar kuch kahti hui . I am speechless bhai..
badhai ho ..
Please read my new poem @ www.poemsofvijay.blogspot.com and give ur valuable comments.
तब अनंत ने एक खिड़की खुलेगी
और हमारी देह को दीप्त करती हुई
अंतरिक्च में प्रेम की जगह बनाएगी
अनंत तारों का एक बिछौना होगा
और हमारी देह
एक ज्वलंत पुष्प ......
मनुज जी हमेशा की तरह सुन्दर....बेहद शशक्त रचना....!!
आपकी कवितायेँ एवं गीतों में जीवन की कई कठिन गुत्थियाँ और भावों का सार है. आप कठिन बातें बड़ी आसानी से कह डालते है. अगली रचना ka इन्तेज़ार रहेगा.
damn good Manuj ji
itni saralta se kaise likhte hai aap
bahut bahut sundar rachna.
asha hai hum aagey bhi aapko yun hi padtey rahenge
Anant taron ka bichouna hoga
aur hamari deh kamaal kaha hai dost
bahut achha
Manuj bhai ,
sorry for late arrival , i was on tour.
aap viswas nahi karonge ,lekin maine in dino men is poem ko kareeb 4 baar padha hai aur , bahut dil se padha hai ..
aur har baar ,ye nazm ,ek nayi baat kahti hui si nazar aa rahi thi , darwaja par main bhi kuch jarur likhunga aur wo aapko samparpit karunga ..
तब आनंत में एक खिड़की खुलेगी
और हमारी देह को दीप्त करती हुई
अन्तरिक्ष में प्रेम की जगह बनाएगी.
ye lines bahut acchi hai
badhai
aaj kal aap mere dware aate nahi ho , koi narazgi hai kya bhai..
main bhi kuch likha hai , jarur padhiyenga pls : www.poemsofvijay.blogspot.com
adhbut bimbo ka prayog! kahin kahin se har hasrat apni si lagti hai..accha likha hai !
Amazing blog and very interesting stuff you got here! I definitely learned a lot from reading through some of your earlier posts as well and decided to drop a comment on this one!
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