Tuesday, October 7, 2008

तुम्हारा नाम

कल रात कुछ सपने
अपनी धुन में भागते, दौड़ते
अठखेलियाँ करते
मेरे सिरहाने आ पहुंचे,
बहुत प्यारे, बहुत नाज़ुक,
बहुत चंचल,
कुछ उम्र में बड़े कुछ बच्चे भी
कुछ अपनों और कुछ बेगानों के
कुछ शोख, कुछ बहुत शर्मीले,
मैंने प्यार से उन्हें सहलाया
जगह दी अपने करीब,
एक नाज़ुक ख़ूबसूरत सा सपना
उठ खड़ा हुआ बोलने को,
मैं सुन न पाया कुछ और
बस इतना ही सुना की कहीं किसी जगह
उसने लिया तुम्हारा नाम

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर शब्दचित्र।सुन्दर भाव।बधाई।

रश्मि प्रभा... said...

maine is rachna ko pahle bhi padha,apne vichaar bhi diye the...khair,nazuk sapnon si bahut hi pyaari rachna