मैं तुम्हे देख नही सकता
जबकि तुम मुझे चारों तरफ से घेरे हो
मैं
एक पुराने मकान की तरह हूँ
जहाँ बरसों बाद कोई रहने आया है
कुछ नए फूल,
सफ़ेद बादल और उजली धूप लिए
तुम्हारे साथ आये हैं
कई अदृश्य जन्मान्तर
आशा का एक महाद्वीप
आराधना के लिए जलता हुआ एक दीप
शायद प्रेम में यही होता है
सारा ब्रह्माण्ड यूँ ही मिल जाता है
मैं अपने रग रग में महसूस कर सकता हूँ तुम्हे
छू सकता हूँ,
तुम्हारे साथ भीग सकता हूँ,
जाग सकता हूँ, सो सकता हूँ,
तुम निश्छल आकाश हो
एक अबोध बच्चे की मासूम प्रार्थना हो
तुम धरती हो
बारिश हो
हरियाली हो
तुम मुझे भूल न जाना
एक अकस्मात अतिथि की तरह
जो संयोगवश
मेरे दरवाजे पे आ गया.
18 comments:
अद्भुद शब्द और भाव नियोजन है.बहुत सुंदर.
'mind blowing composition.... shayad nahee ykeenan pyar mey yhee hotta hai..'
regards
बहुत पसंद आई आपकी यह रचना मनुज जी ..भावों का सुंदर चित्रण है इस में
Loved the conclusion the most !
**तुम मुझे भूल न जाना
एक अकस्मात अतिथि की तरह
जो संयोगवश
मेरे दरवाजे पे आ गया.**
kabhi is nazariye se nahi socha tha..
कुछ अलग पढ़ा प्रेम में रचा-बसा!
Kamal kar diya manuj!
कमल कर दिया मनुज!
अच्छी कविता, प्रेम पर एक नए तरीके से, बधाई
What can be more deeper than this..
Haan Prem Mein Yehi Hota Hai..
Aur Kuch Bhi Nehi....
Glad that I found your Blog...
शायद प्रेम मे यही होता है फूट पड़ती है रसीली पंक्तिय़ा किसी निर्झर की तरह.....अद्भुत
शायद प्रेम मे यही होता है फूट पड़ती है रसीली पंक्तिय़ा किसी निर्झर की तरह.....अद्भुत
प्रेम की अद्भुत व्याख्या.......
आप सभी का आपना मूल्यवान समय देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, अत्यधिक व्यस्तता होने की वज़ह से सभी के ब्लोग्स पर अभी टिपण्णी नही कर पाऊँगा, जल्द ही आपके कमरे (ब्लॉग) पर मिलता हूँ.
आपका अनुज
मनुज मेहता
हर बार की तरह बहुत सुंदर पंक्तिया अंत्यंत गंभीर भाव संजोये चुनावी दंगल पढ़ने मेरे ब्लॉग पर पधारें
बहुत खूब .आखिरी पंक्तिया ख़ास तौर से अच्छी लगी
बहुत सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकारें
दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ "" कृपा बनाए रखें /
... सुन्दर अभिव्यक्ति ।
बहुत ही खूबसूरत कविता
पढ़ कर आनन्द आ गया
साधुवाद
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