जानती हो!
आज का दिन कैसा है
जब तुम मेरे पास नही हो,
सूना सा मेरा कमरा गुमसुम सा है,
हलकी सी आहट पर,
दरवाज़ा दूर तक ढूँढ आया है तुमको!
और बिस्तर की सिलवटें भी,
काफी देर से उलझी पड़ी हैं आपस में,
धूल भी,
बेखौफ,
कब से लेटी है मेरी कुर्सी पर,
और ये खिड़की
एक टक देख रही है आकाश की तरफ,
धूप भी!
कमरे में बस झांक कर
और तुम्हे न पाकर
सामने की देहलीज पर चढ़ गई है,
फूल भी बेजान पड़े हैं मेज पर
तुम्हारे स्पर्श के इंतजार में,
अजीब सी खामोशी है हर तरफ़,
और मैं इन सब से बचने के लिए
किताब हाथ में लिए बैठा हूँ
तुम्हारे आने के इंतज़ार में
सच में सब कुछ कितना अस्तित्वहीन है
आज, जब तुम मेरे पास नहीं हो.
8 comments:
सुंदर शब्द रचना से कसी हुयी मार्मिक भावाभिव्यक्ति
बधाई
आपका इंतज़ार है मेरी नई पोस्ट पर आपके विचार प्रस्तुत करें
बहुत खूब.....बहुत अच्छे ......
bahut hi achhi lagi,
pyaar ki kami astitvahin si hoti hai
बहुत अच्छा लगा पढना.. बहुत भावपूर्ण कविता है..
किताब हाथ में लिए बैठा हूँ
तुम्हारे आने के इंतज़ार में
सच में सब कुछ कितना अस्तित्वहीन है
आज, जब तुम मेरे पास नहीं हो.
' kise se dur hone ke or akela feel kerne kee bhut marmik abheevyktee hai'
regards
आपके मेरे ब्लॉग पर पधार कर उत्साह वर्धन के लिए धन्यबाद. पुन: नई रचना ब्लॉग पर हाज़िर आपके मार्ग दर्शन के लिए कृपया पधारे और मार्गदर्शन दें
I love it. Brilliant! :)
प्यारी कविता।
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