मैं खींच लूँगा आकाश से नीली चादर
और सफ़ेद बादलों से नरम तकिया,
घास से मांग लूँगा हरा कालीन
और पेड़ से छप्पर,
तुम्हारे लिए सब कुछ वैसा ही रखूँगा,
शरद के आकाश में आधा चाँद,
झींगुरों का संगीत
और जुगनुओं की टिमटिमाती रौशनी.
रात को लगने वाली प्यास के लिए पास की नदी
और तुम्हे रिझाने के लिए कुछ नक्षत्र और आकाशगंगा.
हवा भी मंद मंद तुम्हारे बालों को सहलाती चलेगी.
जहाँ जहाँ तुम्हारा तपता स्पर्श होगा वही फूटेगी ईब
तुम्हारी आधी मुंदी आँखों में मेरे जगे स्वप्न तैर जायेंगे
और एक नयी कविता लिखेंगे
और तुम्हारी रौशनी में
मेरे कुछ अँधेरे शब्द पा जायेंगे ज़िन्दगी.