सुनो, तुम मेरे शब्दों का मोल क्या दोगे?
कहाँ हैं तुम्हारी जेब में आकाश गंगा और हजारों सितारे?
बिस्तर की कितनी ही सिलवटों में
धरती,आकाश
और अन्जले चिरागों को समेटा है मैंने.
तुम्हारे अस्वीकार के बाद
उन हारे हुए शब्दों का क्या मोल?
डूबते हुए अंधेरे के अदृश्य कम्पन में
चाँद मेरी आंखों में कई बार डूबा है,
तुम्हारे बदलते रंगों से ,
तुम्हारी त्वचा के उजास से
अंधेरे और उजाले के बीच की खामोशी से.
अपने अंगों से,
अपनी देह से,
अपने मन से,
अपने ही भार से,
और तुम्हारे मर्दन से,
डर लगता है
तुम्हारा चुप रहकर मेरे निराश झरोखे पर खड़े रहना
अंत के पहले का विषाद नही तो और क्या है?
तुम्हारे होने का न तो हवा को पता है न ही धूप को
तुम्हारी झुलसती अंतरात्मा और पथराती देह क्या मोल देगी मेरे शब्दों का,
क्यूंकि धूप नही कहती की उसके पास रौशनी है
और आग की उसके पास लपटें.
29 comments:
एक बार फिर आपने मनुज भाई मेरा दिल जीत ही लिया.....इस पाने की तकरीबन सब ही कवितायें........बड़ी अच्छी बन पड़ी हैं.............वो क्या कहते हैं ना....ओ गुरु तुस्सी छा गए....!!
क्या बात है..बहुत बढ़िया.
शब्दातीत होकर लिखे जाने वाले अनुभवों में ऐसी ही परगम्यता रहा करती है। मन को सुकून देने वाली रचना।
पहली बार आया हूं शायद, पर मुग्ध हो गया।
तुम्हारी झुलसती अंतरात्मा और पथराती देह क्या मोल देगी मेरे शब्दों का,
" बेहतरीन भावनात्मक प्रस्तुती....सच कहा शब्दों का कहाँ कोई मोल दे सकता है , नही दे सकता..."
Regards
तुम क्या मोल दोगे शब्दों का......बहुत ही गहरा दर्द है
क्यूंकि धूप नही कहती की उसके पास रौशनी है
और आग की उसके पास लपटें.
ये वो पंक्तियाँ हैं जिन्हें बार-२ पढ़ने का मन हो रहा है ...बहुत-२ बधाई...
सुनो तुम मेरे शब्दों का मोल क्या दोगे
कहाँ है तुम्हारी जेब में आकाश गंगा और हजारों सितारे....? वाह मनुज जी फ़िर एक गहरी रचना के लिए बधाई....!
बहुत ही गहरे तक जाती है आप की यह मार्मिक कविता,अति सुंदर, धन्यवाद
हमेशा की तरह बहुत गंभीर बहुत सरस रचना सार्थक भी
manuj ji
kya kahun , nishabd hoon .. padh raha hoon .. aur shabdo ko apne bheetar samate hue dekh raha hoon ...
kya kahun ... ultimate ..
तुम्हारे अस्वीकार के बाद
उन हारे हुए शब्दों का क्या मोल?
kya kaha hai mere dost .. kya baat hai ..
poori poem ki undertone kuch aur hai ,lekin shabdo ka jaadu gazab ka hai ..
meri dil se badhai sweekar karen ..
vijay
Hello Dear Manuj!
Your words really reach the depth of heart..I would really like to read someday, a poem on your soul..soul that is contented with inner happiness. I want to see your words dancing with your joy!
Hope I see that day soon!
Cheers,
प्रत्येक पंक्ति अनमोल
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इस कविता की खूबी बताऊं...मैंने उसका दर्द भी महसूस किया जो शब्दों का मोल नहीं दे सकता...
Bahut hi behtreen rachna.
saral shabdo ke prayog se itni achhi rachna... badhai
बढ़िया शब्दायोजन........ लो बधाई संभालो प्यारे..
सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!
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60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!
तुम्हारा चुप रहकर मेरे निराश झरोखे पर खड़े रहना
अंत के पहले का विषाद नही तो और क्या है?
आपकी सशक्त लेखनी से निकली हुयी बेहतरीन कविता है यह
बहुत सुंदर
Good doing
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"तुम्हारे अस्वीकार के बाद
हारे हुए उन शब्दों का क्या मोल"
कोई पुरानी याद जी उठी इन पंक्तियों को पढ़ कर...अपनी सी लगी ये कविता.बहुत खूबसूरत लिखा है, कहते हैं न जब कविता में अपना दर्द नज़र आने लगे, कविता सजीव हो जाती है. हार्दिक धन्यवाद इस बेहतरीन रचना के लिए.
kayi baar padh chuki hoon
magar har baar kuch likhe bina hi chali gayi shabd hi nahi the
ab bhi nahi hai
shabdon mein kisi ki bhavnatmak kavita ka kya mol hoga
"तुम्हारे अस्वीकार के बाद
हारे हुए उन शब्दों का क्या मोल"
Bahut bahut sundar bhaavpoorn aur mohak abhivyakti hai.Aabhaar.
bahu t hi gehri bahvnao ko ubhara hai aapne. aapke shabd sahi main unmaol hai.
good one
कहां हैं हुज़ूर...?
बहुत ही लाजवाब ...शब्दों को बखूबी अंजाम दिया है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
मनुज !
हारे हुये शब्दों का मोल अनमोल है. चुप चाप हुं नि:शब्द एक दम निस्पंद सा ...... ईश्वर तुम्हे और तुम्हारी लेखनी लेंस को और सशक्त करे - शुभकामना
We are all free to make our choices but never free from the consequences of those choices.....
The poem made me think about the price we have paid.....
It is your words or the downcast day or the combo ???
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