मेरी निगाह को ये जुस्तजू भला किसकी है,
कौन से हैं लब वहाँ, ये शिफा किसकी है,
अज़ल से खींच कर जो दुनिया में लायी है मुझे,
बता तो सही ऐ खुदा, ये दुआ किसकी है,
जाते हैं कदम तन्हा, ढूँढती है किसे निगाह,
जो खींचती है वालिहाना ये सदा किसकी है,
वो कब होगा आशकार मेरे सामने ऐ खुदा,
कौन है हिजाब में ये आरजू भला किसकी है,
ये किसकी निगाह का जादू कि आईने मचल उठे,
कौन है वो भला, ये अदा किसकी है,
ग़म-ऐ-इश्क में मुश्किल है, लुत्फ़ का मय्यसर होना,
सदा रहें गर्दिश में बशर ये इल्तिज़ा किसकी है.
बशर- मेरा तख्लुस/my pen name
अज़ल - मौत
वलिहना - प्यार से
सदा - आवाज़/पुकार
आशकार - हाज़िर
हिजाब - पर्दा
मयस्सर - मुमकिन
8 comments:
बहुत बढिया गजल है। बधाई स्वीकारें।
ग़म -ऐ-इश्क में मुश्किल है, लुत्फ़ का मय्यसर होना,
सदा रहें गर्दिश में "बशर" ये इल्तिज़ा किसकी है.
बहुत अच्छा लिखा है !
क्या बात है बहुत खुबसुरत रचना. अति उत्तम. लिखते रहे.
ग़म -ऐ-इश्क में मुश्किल है, लुत्फ़ का मय्यसर होना,
सदा रहें गर्दिश में "बशर" ये इल्तिज़ा किसकी है.
'its really mind blowing creation'
regards
ek khubsurat gazal.....kamre me mukhrit hai
कमाल का लिखा है, जितनी भी तारीफ की जाये कम है।
bahut hi sundar ,bhavon se purna....
लाज़बाब मनुज जी सुंदर ख्यालात से सजी आपकी शब्द पिरोने की कला काबिले प्रणाम है रचना के लिए बधाई स्वीकारें मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन के लिए बहुत बहुत धनयबाद नई रचना हैण्ड वाश डे पढने पुन: आमंत्रित हैं
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