Monday, October 13, 2008

मैं खिन्न हूँ

मैं खिन्न हूँ, क्यूंकि मैं हिंदू हूँ, मुझमे और आतंकियों में अब कोई फर्क नही, मेरी गीता आज मुझे गैर हिन्दुओं का घर जलाने को कहती है, वाल्मीकि की रामायण अब झूठी हो गई है, क्यूंकि राम अब पुरुषोतम नहीं रहे. बजरंगबली तो अब घरों को भी जलाने लगे हैं. हिंदू होना मेरे सिर को अब झुकाने लगा है. महाराष्ट्र में अब मैं मराठा हूँ और उड़ीसा में बजरंगी. हिन्दुत्व शब्द अब मेरी शब्दावली में नहीं रह गया. पर माँ की पढ़ाई हिन्दुत्व की बातों में तो यह अलगाव नही था. मैंने जो गीता छानी उसमे भी यह ज़िक्र नही था, या फिर मैं कोई पन्ना पढ़ना भूल गया? जहाँ लिखा था जो हिंदू नही उसका घर फूँक दो और जलने से भी जो बच जाए उसे मार दो. यह शायद कोई नई गीता लिखी जा रही है, अगर ऐसा है तो मैं नही चाहूँगा की मेरी आने वाली नस्ले उसे पढे और राम, शिव, बजरंग बलि या कृष्ण को कोसे.
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फिर इक बार मुझे सूली चढाया जाए,
मेरे सलीब को काँधे उठाया जाए.

इस नफ़रतो-गारत की दुनिया में खुदा,
मेरे वजूद का एहसास कराया जाए.

आँख रोती है, दिल सिसकता है बहुत,
तेरे बच्चों को फिर राह पे लाया जाए.

मेरा जिस्म और लहू बंट गया है तमाम,
हो अगर तो एक और ईसा को बुलाया जाए.

तू ही मौला है, तू ही ईसा, तू ही भगवान् ! पिता,
कैसे रूठे हुए बच्चों को समझाया जाए.

कब कहा था मैंने की मेरा मजहब जुदा है,
फिर इक बार मेरे वचनों को दोहराया जाए.

22 comments:

Anonymous said...

खिन्न होने के लिए भी विदेशी ईसाई मिशिनरी वाले पैसे देते है। आपको मिले या नही? . . . . . विदेशी धन के प्रयोग द्वारा धर्मानतरण कराने वाले दुष्टो का विरोध करना जायज है। स्वामी लक्ष्मनानद जी की हत्या के लिए चर्च को शर्मिन्दा होना चहिए, उन्हे अपराध बोध होना चहिए। बजरंगीयो का विरोध जायज है। हां कही कही मर्यादाए भंग हुई है। लेकिन सारी मार्यदा पालन की अपेक्षा सिर्फ हिन्दुओ से क्यो की जाती है?

Manuj Mehta said...

प्रतिक्रिया करने के लिए धन्यवाद, आपकी नाराज़गी शायद जायज़ हो क्यूंकि सत्य आपको नही मालूम, जर्नलिस्ट होने के नाते मैं आपसे ज्यादा इस विषय में जानता हूँ.आपकी जानकारी के लिए बता दूँ, की स्वामी जी की हत्या की जिम्मेवारी नक्सलियों ने ली है, अब वो इसाई हैं या हिंदू यह तो मैं नही जानता पर बज्रंगियूं को हत्या करने का ठेका किसने दे दिया. और भी कई रास्ते हैं अगर धर्मान्तरण की ही बात है. हम जो शुधि कराकर फिर हिंदू बना देते हैं उसका क्या. मुझे हिन्दुत्व से प्यार है, कसाईपन से नही. यह कहाँ लिखा है कि आप बिना किसी सबूत के सिर्फ़ वहम के शिकार होकर हत्यारे बन जाईये. सत्य को सामने लाईये और सत्य का सामना कीजिये.
आपका अपना नाम छुपाना ही काफी कुछ कह जाता है.

परमजीत सिहँ बाली said...

तू ही मौला है, तू ही मूसा, तू ही भगवान् ! पिता,
कैसे रूठे हुए बच्चों को समझाया जाए.

बहुत सुन्दर भाव है।बधाई।

विनय राजपूत said...

मै आप के लेख से बकाए प्रभावित हूँ l आप ने कट्टरवाद को रोकना चाह है l सदा ही आपने कदमो पर अडिग रहे l

Puja Upadhyay said...

अच्छा लिखा है आपने, कविता की पंक्तियाँ बेहद सटीक हैं आज के समय और हालत के लिए. आपको बधाई

अमिताभ मीत said...

बहुत अच्छा लिखा है भाई. उम्दा पोस्ट.

श्यामल सुमन said...

हम सभी जानते हैं कि सामाजिक सौहार्द के लिए शांति आवश्यक है। रचनाकार भी समाज का अंग है और उनके भी सामाजिक सरोकार हैं। अतः आपकी कोशिश अच्छी है लेकिन खिन्न होने की जरूरत नहीं। निद फाजली साहब कहते हैं कि-

घर से मस्जिद बहुत दूर है, बहुत दूर है।
किसी रोते बच्चे को हँसाया जाये।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

seema gupta said...

तू ही मौला है, तू ही मूसा, तू ही भगवान् ! पिता,
कैसे रूठे हुए बच्चों को समझाया जाए.
" what to say, very daring presentation, very impressive word composition, i respect your feelings and your thoughts you have tried to express through this creation.."

Regards

art said...

आपका लेख तो सटीक लगा ही.....साथ ही यह कहना चाहती हूँ की आपके फोटो ब्लॉग stillwala ने मुझे बहुत बहुत प्रभावित किया......बहुत दिनों के बाद किसी इतने अच्छे ब्लॉगर पढ़ा और आपकी लेन्सेस द्बारा जो दुनिया देखि वो अद्भुत है.....निस्तब्ध कर दिया आपने...आपके शब्दों और चित्रों में एक आकर्षण है.....अपनी कला का सदुपयोग कृपया करते रहें......और हो सके तो समाज-संशोधन की चर्चा भी अपने चित्रों और लेख में करे....

PREETI BARTHWAL said...

न हिन्दु बनेगा न मुसलमान बनेगा
इन्सान का बेटा है इन्सान बनेगा

आतंकी तो किसी धर्म के हो ही नही सकते क्योंकि कोई धर्म ये नही सिखाता कि दूसरों को किसी भी तरह का नुक्सान पहुंचाओ।

Sajeev said...

वाह मनुज पिछले कुछ दिनों में जो हुआ उन सब के बाद ये ग़ज़ल पढ़कर लगा की हाँ मानवता और संवेदनाएं आज भी जिन्दा हैं....कमाल का लिख रहे हैं आप आजकल

अनाम भाई की टिपण्णी पढ़ कर लगा कि धरम के नाम पर निहाथे लोगों की निर्मम हत्याओं को भी हम जायज़ करार रहे हैं भाई साब आप में और अल कैदा में बहुत थोड़ा सा फर्क है, क्या आप ने भी जश्न मनाया था जब अखबारों की सुखियों ईसाईयों को जिंदा jalane की kahbar chaapi thii, धरम parivartan अगर होता है to इसके जिम्मेदार हमारी samjajik buraaiyan हैं, mashniri नही, जब ये वर्ग abhaaon में jee रहा था tab इस tathakathit हिंदू समाज ने क्यों उनकी sudh नही ली , बहुत से विदेशी hindustaan में आकर हिंदू धरम अपनाते हैं,बहुत से हिंदू मठ अपने धरम का प्रचार विदेशों में भी करता है, अगर वो लोग कृष्ण को जान जाएँ और हम जीसस को तो क्या बुराई है, इससे कुछ बदल जाएगा, हम इंसान नही रहेंगे क्या. आप लोग पढ़े लिखे होकर राजनेताओं की चाल में कैसे आ जाते हैं समझ नही पाता, इश्वर आपको सदबुधि दे

Manuj Mehta said...

परमजीत बाली, राजपूत, पूजा, मीत, श्यामल सुमन, सीमा जी, स्वाति, प्रीती और मेरे प्रिय सजीव जी, आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया. सजीव जी आपने बहुत ही आची तरह मेरे विचारों को शब्द दिए, मुझे भी यही लगता है की आने वाली नस्लूँ को जहाँ हम प्यार और सोहार्द दे सकते हैं वहां हम नाफरातून के बीज बोते जा रहे हैं.
आप सभी का यहाँ आने के लिए शुक्रिया

प्रदीप मानोरिया said...

मनुज जी आपकी लेखनी से रोशनाई नहीं जादू निकलता है बेहतरीन कविता और आल्केह पढ़वाने के लिए धन्यवाद मेरी नई रचना कैलंडर पढने हेतु आप सादर आमंत्रित हैं

रश्मि प्रभा... said...

main apni maun vyatha ko kya shabd dun......

BrijmohanShrivastava said...

बहुत ही सुंदर /बिल्कुल सही है -झूंठी तो क्या वे तो बिल्कुल ही धार्मिक ग्रंथों को टीका टिप्पणी का विषय बनाए हुए है /बाँटने की बात पर याद आया ""इतने हिस्से में बंट गया हूँ में ,मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं ""

hindustani said...

aap bhoot aacha likhte he.
mere blog pe bhi padhariye kabhi.

Cinderella said...

Wow ! Amazing poetry !!!

A very apt representaion of the current state of affairs and the common man - the innocent man.

I dont write in hindi, but love reading hindi poetry - and glad to come across a hindi poet after a long long time. YOr blog os a treat for sure.

Wil be back.

p.s : Hopped in from indiblogger, need I say I'm glad ?

Cinderella said...

Manuj ! I'm floored with your kavita !!!

Read all of the pieces on this page. Linking you.

Hope you wouldnt mind.
:)

Suneel R. Karmele said...

अपनी वि‍चारों को इसी तरह से मजबूती से रखते रहें।

आज भगवान भी भक्‍तों से बदनाम हैं
न वो हि‍न्‍दु, न इसाई और न मुसलमान है

बधाई मनुज भाई।

Nayan said...

First time here.. but this post really got me.

Moral amazingly put. You are very good at writing. :)

life said...

vaise aapko hindu nahi inssan hone par khinna hona chaaiye , kyoki kya aap muslim ya issai hokar khush rah paate sayad nahi ,kyoki yah poori inssaniyat ka rog hai .dharma kabhi hinsa nahi sikahata .isliye isaan bane rahana hi sabse badi chunauti hai.
dhanyavad, mere blog par bhi padharein.

Anonymous said...

great stuff! bravo!