आओ वो पुरानी किताब ढूंढें,
जिसके सफों में बरसों पहले,
एक गुलाब रखा था हमने,
आओ! उसे पानी दे दें
मुरझा गया है शायद.
सर्दी की वो सर्द सुबहें भी,
कितनी गर्म थीं उस शॉल के अंदर
जिसे हम अक्सर ओढ़ लिया करते थे
आओ! वो शॉल ढूंढें.
कॉफी होम के वो दिन, याद हैं ना,
कितने आसान से थे,
तुम्हारा आना, मेरा मिलना
और शाम का हंसते हुए चुपचाप ढल जाना
आओ! उन हंसती शामों की सुबह ढूंढें.
आओ! वो पुरानी किताब ढूंढें!
~मनुज मेहता