मैंने सोचा
कि उसके चले जाने से,
जो कांपती सी खाली जगह बची है,
वहाँ कुछ शब्द रख दूँ,
फिर मन में आया,
कि खुरदरे संबंधों और अपमानित आशाओं को क्या नाम दूँगा?
क्यूंकि जाले सिर्फ़ कमरों में ही नहीं,
मन और शरीर पर भी तो उग आए हैं!
मेरे शब्दकोष पर लगे ताले कि चाबी
तो बरसों पहले ही खो दी थी उसने,
पता नही यह जगह
उसे अब याद भी होगी या नही.
इस ताले में रखे शब्द
मुझे उससे जोड़ेंगे या स्पंदित होकर ख़ुद भी खो जायेंगे.
मुझे मालूम है कि
बिना शब्दों के
न तो वो बचेगी न ही ये स्पंदन,
जो बचेगा वो मैं ही होऊंगा ,
क्यूंकि उजाले और मटियाले कि महक बताने के लिए
किसी को तो बचना होगा
शब्दों कि जगह.