Saturday, October 11, 2008

ग़ज़ल

मेरी निगाह को ये जुस्तजू भला किसकी है,
कौन से हैं लब वहाँ, ये शिफा किसकी है,

अज़ल से खींच कर जो दुनिया में लायी है मुझे,
बता तो सही ऐ खुदा, ये दुआ किसकी है,

जाते हैं कदम तन्हा, ढूँढती है किसे निगाह,
जो खींचती है वालिहाना ये सदा किसकी है,

वो कब होगा आशकार मेरे सामने ऐ खुदा,
कौन है हिजाब में ये आरजू भला किसकी है,

ये किसकी निगाह का जादू कि आईने मचल उठे,
कौन है वो भला, ये अदा किसकी है,

ग़म-ऐ-इश्क में मुश्किल है, लुत्फ़ का मय्यसर होना,
सदा रहें गर्दिश में बशर ये इल्तिज़ा किसकी है.



बशर- मेरा तख्लुस/my pen name
अज़ल - मौत
वलिहना - प्यार से
सदा - आवाज़/पुकार
आशकार - हाज़िर
हिजाब - पर्दा
मयस्सर - मुमकिन

8 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया गजल है। बधाई स्वीकारें।

ग़म -ऐ-इश्क में मुश्किल है, लुत्फ़ का मय्यसर होना,
सदा रहें गर्दिश में "बशर" ये इल्तिज़ा किसकी है.

Satish Saxena said...

बहुत अच्छा लिखा है !

Advocate Rashmi saurana said...

क्या बात है बहुत खुबसुरत रचना. अति उत्तम. लिखते रहे.

seema gupta said...

ग़म -ऐ-इश्क में मुश्किल है, लुत्फ़ का मय्यसर होना,
सदा रहें गर्दिश में "बशर" ये इल्तिज़ा किसकी है.
'its really mind blowing creation'

regards

रश्मि प्रभा... said...

ek khubsurat gazal.....kamre me mukhrit hai

कडुवासच said...

कमाल का लिखा है, जितनी भी तारीफ की जाये कम है।

art said...

bahut hi sundar ,bhavon se purna....

प्रदीप मानोरिया said...

लाज़बाब मनुज जी सुंदर ख्यालात से सजी आपकी शब्द पिरोने की कला काबिले प्रणाम है रचना के लिए बधाई स्वीकारें मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन के लिए बहुत बहुत धनयबाद नई रचना हैण्ड वाश डे पढने पुन: आमंत्रित हैं