Friday, October 10, 2008

ग़ज़ल

तेरे मकबूल हाथों में जिंदगानी दे दी,
मैंने अपनी मुह्होबत की निशानी दे दी

तू करम है, तेरे नाम का दम भरता हूँ,
मैंने सिये हुए होठों को ज़बानी दे दी

एक मुद्द्त से मैं उलझा था कोरे पन्नो में,
तूने आकर मेरे लफ्जों को कहानी दे दी

कितना मुश्किल था मुह्होबत का मुक्कमल होना
तूने देखा मेरे ज़ज्बात को, रवानी दे दी


तू फ़रिश्ता है, मासूम सा दिल रखता है
तूने बिखरे हुए मेरे घर को निगेहबानी दे दी



निगेहबानी - protection

13 comments:

रश्मि प्रभा... said...

तू फ़रिश्ता है, मासूम सा दिल रखता है
तूने बिखरे हुए मेरे घर को निगहबनी दे दी
.......
is ehsaas ko yaani is gazal ko gungunane ka dil karta hai,
bahut achhi

seema gupta said...

few lines in addition"
'तेरी चाहत मे भिगो कर जो एक गीत मैंने लिखा,
देख आज दुनिया को मैंने तेरी मेरी कहानी दे दी...

Regards

BrijmohanShrivastava said...

इतनी सुंदर गजल को गुनगुनाने में थोड़ी दिक्कत पेश आरही है =यदि पहली लाइन में ""जिंदगानी "" की जगह जिंदगी कर दिया जाए और तूने बिखरे हुए मेरे घर बाली लाइन में किसी शायर से शब्दों का चयन करवा लिया जाए तो गजल बेमिसाल हो जायेगी

Manuj Mehta said...

ब्रिमोहन जी, सबसे पहले तो आपका तहे दिल से शुक्रिया की आपने मेरी लिखी ग़ज़ल को सराहा और प्यार किया.
जैसा की आपने कहा की इस ग़ज़ल को गुनगुनाने में आपको दिक्कत पेश हो रही है, इसके लिए माफ़ी चाहूँगा पर मेरी कोम्पोजीशन के अनुसार यह शब्द सटीक हैं. और जैसा की आपका मशवरा है की जिंदगानी की जगह ज़िन्दगी कर दिया जाए, अगर ऐसा हो गया तो साड़ी ग़ज़ल का "काफिया" ही बदल जाएगा. यहाँ काफिया है आ और इ का. यानि "आनी" का. तो सिर्फ़ इ के काफिये से पूरी ग़ज़ल का हिसाब ख़राब हो जाएगा. मतला ही बदल गया तो पूरी ग़ज़ल में बचा क्या. निगेहबानी की जगह मैंने गलता लिख दिया था निगेह्बनी हो गया था, उसके लिए माफ़ी चाहूँगा. आप आए बहुत अच्छा लगा.

योगेन्द्र मौदगिल said...

एक मुद्द्त से मैं उलझा था कोरे पन्नो में,
तूने आकर मेरे लफ्जों को कहानी दे दी

खूबसूरत अहसास भरी पंक्तियां
आपको बधाई
हरियाणा एक्सप्रैस के साथ मेरे दूसरे ब्लाग पर आएं
yogindermoudgil.blogspot.com

Anonymous said...

अच्‍छी गजल। बधाई।

रंजू भाटिया said...

एक मुद्द्त से मैं उलझा था कोरे पन्नो में,
तूने आकर मेरे लफ्जों को कहानी दे दी

बहुत खूब कहा आपने मनुज जी

शोभा said...

एक मुद्द्त से मैं उलझा था कोरे पन्नो में,
तूने आकर मेरे लफ्जों को कहानी दे दी
बहुत अच्छा लिखा है।

Anonymous said...

एक मुद्द्त से मैं उलझा था कोरे पन्नो में,
तूने आकर मेरे लफ्जों को कहानी दे दी
wah bahut khubsurat

BrijmohanShrivastava said...

प्रिय मनुज ,प्रसन्न रहो /तुम बिल्कुल सही थे /असल में क्या हुआ कम्पुटर पर बैठे बैठे ही मैंने गजल पढी और गुनगुनाई ,थोड़ा अटका और कमेन्ट लिख दी /आदमी की यही फितरत है सामने वाले को पूरा सुने बगैर अपना पांडित्य प्रदर्शन करने लगता है ,कभी कभी तो सामने वाले की बात ही पूरी नहीं हो पाती और अपनी राय प्रकट करने लगता है /यही गलती मुझसे हुई /आपकी गजल नोट की /रात को पढता रहा ,वल्कि यूँ कहूं गाता रहा /कुछ बातें मुझे रात में ही समझ आती है [[वैसे दिखता मुझे दिन में भी है -वरना आप ये सोचे कि इसे रात में समझ आती है तो रात में ही दिखाई भी देता होगा ,खैर ]] हाँ तो रात को पढता रहा जिंदगी तो कैसे ही नहीं बैठता /निशानी .रवानी ,जवानी ,कहानी के साथ जिंदगानी ही होना चाहिए /मेरी वेबकूफी ने आपको परेशान किया इसके लिए शर्मिन्दा हूँ -आपकी नई गजल के इंतज़ार में आपका ..[नाम तो ऊपर लिखा है ]

प्रदीप मानोरिया said...

एक मुद्द्त से मैं उलझा था कोरे पन्नो में,
तूने आकर मेरे लफ्जों को कहानी दे दी

मनुज जी आपकी कलम में से जद्दो झरता है
बहुत लाज़ब्बा रचना है बधाई स्वीकारें
मेरे ब्लॉग पर पधारे
९ तारीख को उद्धव जी ने एक बयान दिया की मुम्बई मेरे बाप की
इस सन्दर्भ में मेरी नई रचना पढ़ें और मुझे मर्दर्शन दे की इस बार पॉडकास्ट के लिए कौन सी कवितायें रिकॉर्ड करुँ

डॉ .अनुराग said...

बहुत खूब

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

देखो भइया हम आपके कमरे में आकर गए थे....आपने जो खिलौने हमारी खातिर छोड़ रखे थे...उनसे हमने खूब जी बहलाया ......क्या कहे बड़ा मजा आया...आज लेट नाईट हो चुकी...वगरना कुछ देर और टिकते...लेकिन फ़िर लोग हमें जाने क्या समझते...इसलिए जाते हैं...भईया...बड़ी सुंदर लिखते हो...भईया.....उपरवाला तुमको खूब परवान चढावे....