Wednesday, October 1, 2008

यकीं दिलाओ

गर तुम इतना यकीं दिलाओ
कि तुम मेरी ज़िन्दगी में आओगी
तो अपनी पलकें दरे राह बिछा कर रखूँ
इक दिया जलता हुआ
गली के मोड़ पर रख आऊं जाकर
और चाँद से थोडी चांदनी लेकर
घर को रौशन कर लूँ

तुम आओ तो
फूलों से खुशबू चुराकर
महका दूँ चमन सारा,
अपने आंसुओं को बचा कर रखूं
तुम्हारे हर शिकवे को धोने के लिए
शब् -ऐ-हिज्राँ को न फटकने दूँ फ़िर से
हर आलम को अपनी हाथों से सवारू.

तुम्हारे चेहरे पे काजल से तिल कर दूँ
हर बला को दूर से ही रुखसत कर दूँ
तुम्हारे आने पे हर जगह फसल-ऐ-गुल होगी
न हार का दुःख होगा,
न जीत की खुशी होगी.

मेरी तमन्ना
जो कब से धूल में पड़ी थी देखो
तुम्हारा नाम सुनते ही आँगन में चली आई है
राह तक रही है तुम्हारी,
ख्वाब सजा रही है देखो

तुम आओ तो
ये मायूसी ये गम
जो कब से घर किए हैं मेरे घर में
इन्हे रुखसत कर दूँ.
मुझे अभी मन्दिर भी जाना है
मन्नत के लिए
इक दिया जलाना है
जिंदगी के लिए
बस! मुझे तुम इतना यकीं दिलाओ
कि तुम मेरी ज़िन्दगी में आओगी

7 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना है।बधाई।

रश्मि प्रभा... said...

ek pyaar bhari sundar rachna

प्रदीप मानोरिया said...

बस! मुझे तुम इतना यकीं दिलाओ
कि तुम मेरी ज़िन्दगी में आओगी
लाजबाब मनुज भाई गज़ब है आपकी मेघ तो लाजवाव है ही इसने भी झंडे गाड दिए |
बधाई स्वीकारें

Anonymous said...

मेरी तमन्ना
जो कब से धूल में पड़ी थी देखो
तुम्हारा नाम सुनते ही आँगन में चली आई है
राह तक रही है तुम्हारी,
ख्वाब सजा रही है देखो

bahot badhiya shabdon ka chayan , dhnyabad, aasha hai aage or bhi rochak kavita padhne ko milegi,

प्रदीप मानोरिया said...

लाजबाब चिंतन बधाई मेने आपका ब्लॉग मेरी सूची में शामिल कर लिया है आप चाहे तो मेरा ब्लॉग आप भी अपनी सूची में शामिल कर सकते हैं फिलहाल आपका मेरी नईई पोस्ट "१२३ परमाणु करार " पढ़ने सदर आमंत्रित है

BrijmohanShrivastava said...

काजल से तिल लगाने और आंसुओं से शिकवे धोने की बात अच्छी लगी

Puja Upadhyay said...

behad khoobsoorat.