Saturday, September 27, 2008

मेरा कमरा

मेरी ज़िन्दगी के मकान का
एक वीरान कमरा
जिसका दरवाज़ा खुलता है
कुछ यादों की तरफ !
कोने की वो खिड़की
जो कितनी पसंद थी तुमको
और उस पर अपने हाथों से सजाये
तुम्हारे ख्वाबों के परदे
आज भी टंगे हैं वहीँ !
वो आले में पड़ी किताबें
जिनका हर सफा पहचानता था तुमको
आज शब्दों में उलझा सा पड़ा है,
मेज पर तुम्हारी वो तस्वीर,
याद है तुमको वो दिन
जब मेरी एशट्रे को हटा कर
अपनी तस्वीर के लिए जगह बनाई थी तुमने !
और कोने का वो मन्दिर जो अपने हाथों से सजाया था तुमने
तुम्हारी जलाई जोत अब तक जल रही है उसमे
सब कुछ आज भी वैसा है
जैसा कभी चाह था तुमने !

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

सब कुछ आज भी वैसा है
जैसा कभी चाहा था तुमने ! ........
यादों के ये एहसास शायद ही किसी कमरे में
मिलते हैं,अच्छा लगा इस कमरे से गुजरना

निर्झर'नीर said...

मेरी ज़िन्दगी के मकान का
एक वीरान कमरा
जिसका दरवाज़ा खुलता है
कुछ यादों की तरफ !
..

namaste ji

aap jaise kalapremi or kavi ne mere alfazoN ko saraha ye mere liye garv ki baat hai ..ye hi bateN hosla badhati hai.

aapko padha bahot hi khoobsurti se lafzo ko bunte hai aap
ek accha srangar jaise dulhan ko saja diya gaya ho aise hi bhaavo ko sajate hai aap.
aapse milkar khushi huii