Friday, September 26, 2008

मैं भेज रहा हूँ तुम्हे

सुनो
मैं भेज रहा हूँ तुम्हे
अपने झिझकते शब्दों के साथ
थोड़ा सा सावन
अंतर्मन को गुदगुदा देने वाली
पहली फुहार
सर्द सुबह की पहली ओस
भीगी हुई घास की हरी गुनगुनाहट
झींगुरों की अंतहीन पुकार
पक्षियों का कलरव
थोड़ा सा आकाश
तारों की कतार
और एक प्राचीन कामना के साथ
अपना प्रणय निवेदन।

मनुज मेहता

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर एहसास।
कृपया Verification को हटाए।